जब कभी दुनिया की अर्थव्यवस्था की बातें सुनता हूं तो दिल में एक जिज्ञासा उठती है। हमेशा यही सोचता हूं कि आखिर ये बड़े देश जैसे अमेरिका या ब्रिटेन ही क्यों सुर्खियों में रहते हैं। लेकिन इस बार कहानी थोड़ी अलग है। दुनिया का नक्शा बदल रहा है। और इस बदलाव की अगुवाई कर रहे हैं ब्रिक्स देश।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक BRICS countries 2025 में औसतन 3.8 प्रतिशत की दर से बढ़ेंगे। वहीं दूसरी तरफ G7 economies की रफ्तार केवल 1.0 प्रतिशत पर सिमट जाएगी। यह आंकड़ा सिर्फ एक नंबर नहीं है। यह उस दिशा की ओर इशारा करता है जहां विकास का सूरज अब पश्चिम नहीं बल्कि पूर्व में उग रहा है।
BRICS Growth 2025: भारत और इथियोपिया चमकते सितारे
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025 में भारत की वृद्धि दर 6.6 प्रतिशत रहेगी। इथियोपिया इससे भी आगे 7.2 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ेगा। यह सुनकर गर्व भी होता है और उम्मीद भी। क्योंकि भारत की यह ग्रोथ सिर्फ नंबर नहीं है। यह उन युवाओं की मेहनत का नतीजा है जो दिन-रात अपने सपनों को साकार करने में जुटे हैं।
क्या आप जानते हैं कि चीन की वृद्धि दर भी 4.8 प्रतिशत अनुमानित है। और यही बात इसे अभी भी दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में बनाए रखती है। वहीं संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसी तेल आधारित अर्थव्यवस्थाएं भी अब 4 प्रतिशत से अधिक की रफ्तार पकड़ रही हैं।
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दूसरी ओर G7 countries 2025 की स्थिति थोड़ी ठहरी हुई सी लगती है। अमेरिका 2.0 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ेगा। ब्रिटेन 1.3 प्रतिशत पर रहेगा। कनाडा और जापान करीब 1 प्रतिशत के आसपास टिके रहेंगे। और जर्मनी जो यूरोप की औद्योगिक शक्ति कहलाता है उसकी अनुमानित वृद्धि दर केवल 0.2 प्रतिशत बताई गई है।
यह पढ़कर सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। तो जवाब सीधा है। इन देशों की अर्थव्यवस्था अब संतृप्त हो चुकी है। आबादी बूढ़ी हो रही है। खर्च कम हो रहा है। और ब्याज दरें ऊंची हैं। ऊपर से युद्ध और राजनीतिक अस्थिरता ने और असर डाला है।
BRICS vs G7: आंकड़ों से कहीं ज्यादा एक सोच का टकराव
अगर हम इसे सिर्फ नंबरों में देखें तो BRICS का औसत 3.8 प्रतिशत और G7 का 1.0 प्रतिशत है। लेकिन इसके पीछे एक कहानी है। यह कहानी बदलते समय की है। एक समय था जब पश्चिमी देश तय करते थे कि दुनिया किस दिशा में चलेगी। लेकिन अब एशिया और अफ्रीका से एक नई आवाज उठ रही है।
भारत जैसे देश डिजिटल अर्थव्यवस्था और युवा जनसंख्या के दम पर आगे बढ़ रहे हैं। वहीं इथियोपिया और इंडोनेशिया जैसे देश अपने औद्योगिक ढांचे को मजबूत कर रहे हैं। ये देश अब सिर्फ उपभोक्ता नहीं रहे। अब ये निर्माता भी बन रहे हैं।
IMF Economic Outlook 2025: आंकड़ों में छिपा बदलाव
आईएमएफ की रिपोर्ट बताती है कि IMF World Economic Outlook 2025 में ब्रिक्स देशों की वृद्धि जी7 देशों से चार गुना तेज होगी। यह सुनकर साफ लगता है कि आने वाले दशक में दुनिया का आर्थिक संतुलन बदलने वाला है। अब जो केंद्र पहले लंदन और न्यूयॉर्क थे, वे धीरे-धीरे मुंबई, शंघाई और जकार्ता जैसे शहरों की ओर खिसकेंगे।
क्या आप सोच सकते हैं कि जिस अफ्रीका को कभी गरीब महाद्वीप कहा जाता था अब वही इथियोपिया सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन सकता है। यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। और भारत की कहानी तो पहले से ही प्रेरणा देने वाली रही है।
क्यों BRICS बन सकता है अगला आर्थिक शक्ति केंद्र
कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि 2025 के बाद BRICS देश दुनिया की आर्थिक धारा को मोड़ देंगे। वजहें भी साफ हैं। इन देशों की आबादी जवान है। संसाधन प्रचुर हैं। और अब नीति निर्माता भी समझ चुके हैं कि आत्मनिर्भरता ही भविष्य है।
भारत में मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं ने घरेलू उद्योगों को नई ऊर्जा दी है। चीन अब हरित ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ रहा है। यूएई और सऊदी अरब अपने तेल राजस्व को तकनीकी क्षेत्रों में निवेश कर रहे हैं। यह संकेत बताते हैं कि विकास अब एकतरफा नहीं बल्कि बहुपक्षीय होने जा रहा है।
Global Economic Shift 2025: अब ताकत का केंद्र बदल रहा है
कई लोगों को यह सवाल सताता है कि क्या यह बदलाव स्थायी होगा। तो मेरा जवाब है हां। क्योंकि अब विकास की नींव जनता पर टिक गई है। जब लोगों को शिक्षा और तकनीक मिलती है तो वे खुद अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाते हैं।
2025 वह साल हो सकता है जब BRICS vs G7 Economic Growth 2025 की यह प्रतिस्पर्धा पूरी दुनिया की कहानी बदल देगी। जहां पहले पश्चिम नीति बनाता था अब पूरब दिशा तय करेगा। यह नया युग है। और इसमें भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएं सबसे आगे रहेंगी।
अंत में एक सच्ची बात
जब मैं इन आंकड़ों को पढ़ता हूं तो मुझे अपने बचपन की याद आती है। हमारे गांव में जब कोई छोटी सफलता मिलती थी तो लोग कहते थे मेहनत करते रहो वक्त जरूर बदलेगा। और अब वही बात दुनिया पर लागू हो रही है।
ब्रिक्स देशों की यह कहानी सिर्फ आंकड़ों की नहीं है। यह उन करोड़ों लोगों की कहानी है जो संघर्ष से सफलता तक पहुंचे हैं। और यही फर्क बनाता है किसी अर्थव्यवस्था को जीवंत।
तो हां यह सही समय है। अब दिशा बदल रही है। और जो मेहनत करेगा वही नई दुनिया की पहचान बनेगा।
क्योंकि जीत हमेशा उसी की होती है जो सबसे पहले सपने देखने की हिम्मत रखता है।
और मैं यही कहना चाहूंगा — मैं एक गांव का लड़का हूं पर अब मैं जानता हूं कि सपना चाहे किसी छोटे से घर से शुरू हो, दुनिया तक पहुंच सकता है।
